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सुनील की नेतृत्व और साहस की यात्रा



मुंबई की उल्लास नगर बस्ती में एक असंगठित कष्टकरी कामगार नाम का संगठन है जिसे सुनील अहीरे चलाते हैं। इसी बस्ती में रहने वाले सुनील एक बेहतरीन व्यक्ति, सक्रिय श्रोता और साथी हैं। दस साल से भी अधिक समय से वो एक सामाजिक संस्था के साथ काम कर रहे थे जो असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कामगारों के हित के लिए लड़ती थी। हालांकि संसाधनों की कमी की वजह से वह संस्था अब बंद हो गई है।


इसके बाद सुनील ने अकेले ही काम करने की ठानी। यह एक साहस भरा कठिन फैसला था क्योंकि इसके लिए धन और अन्य पर्याप्त संसाधन जुटाना इतना आसान नहीं था और सुनील के पास रोजगार भी नहीं था। समुदाय के साथ गहरे जुड़ाव के कारण ही यह संभव हो सका। सुनील उल्लास नगर के लेबर चौक पर जाकर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कामगारों से चर्चा करते और उनकी रोजमर्रा की समस्याओं पर ध्यान देते। इस तरह उन्होंने करीब एक साल का समय बिताया और कामगारों को इकट्ठा किया।


असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कामगारों की बहुत सारी समस्याएँ होती हैं जैसे कि न्यूनतम वेतन ना मिलना, समय पर वेतन का भुगतान ना होना, वेतन दर में लैंगिक भेदभाव होना आदि। इन कामगारों के लिए संवैधानिक कानूनों की कमी एवं सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में उनकी भागेदारी ना होना भी एक बड़ी समस्या थी जिसके लिए सबको मिलकर प्रयास करना था।


वर्ष 2017 में सुनील के साथी कामगारों ने अपनी दैनिक मजदूरी से कुछ पैसे बचाकर असंगठित कष्टकरी कामगार नामक संगठन की स्थापना की और इसकी जिम्मेदारी सुनील अहिरे को सौंपी। सुनील के अथक परिश्रम और लगातार प्रयास से आज इस संगठन में 4500 से भी ज्यादा सक्रिय सदस्य हैं। इनमें घरेलू कामगार, दिहाड़ी मजदूर, निर्माण मजदूर, महिलाओं , पुरुषों तथा युवाओं की बराबर भागीदारी है। सागठन के दफ्तर का किराया कामगारों द्वारा दी गई सदस्यता फीस से भरा जाता है। इस प्रकार यह संगठन पूरी तरह से कामगारों का ही है।


सुनील अहीरे दिसोम की फ़ेलोशिप में सदस्य हैं और एक साल पहले उन्होंने दिसोम के जरिये वी द पीपल अभियान के संविधान से समाधान प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस प्रशिक्षण से संविधान के प्रति उनकी समझ बढ़ी और उन्हें संवैधानिक मूल्यों का जीवन के साथ जुड़ाव समझ में आया। सुनील ने अपनी समझ को संगठन की कार्यशैली में शामिल किया। इससे सामाजिक और आर्थिक न्याय के प्रयास में उन्हें सफलता मिली। संगठन के सदस्यों के लिए बचत गत बनाकर पूरे समुदाय के लिए आर्थिक मदद की व्यवस्था की गई। इसके अलावा सुनील समुदाय में महिलाओं की शिक्षा के प्रति बेहद सक्रिय हैं। वो महिलाओं की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के लिए शिविर एवं प्रशिक्षणों का आयोजन भी करवाते है।


सुनील आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति दिलाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं। वो समुदाय को सम्बंधित समाज कल्याण योजनाओं से जोड़कर उनके जीवन स्तर को बेहतर करने का भी प्रयास करते हैं। इन प्रयासों का असर उनके समुदाय में दिखाई देता है। समुदाय की महिलाएँ व्यावहारिक और आर्थिक रूप से सक्षम हुई हैं। समुदाय में कामगारों के बीच संगठन की भावना और उनका साझा प्रयास सुनील की मेहनत का प्रमाण है।


सुनील जैसे सामाजिक कार्यकर्त्ता जमीनी स्तर पर समुदाय की बेहतरी के लिए काम करते हैं। वो अपने जीवन में संवैधानिक मूल्यों को जीते हैं। समुदाय के प्रति समर्पित होने के अलावा उनकी कार्यशैली, विचार और समर्पण काबिलेतारीफ हैं।


The above story has been written and published with the explicit consent of the individual involved. All facts presented are based on WTPA's direct interaction with the individual, ensuring accuracy and integrity in our reporting.

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