धर्म को लेकर होने वाली लड़ाईयों और संघर्षों से बँटी दुनिया में हमें एक ऐसा व्यक्ति मिला जो ये मानता है कि "बदलाव की शुरुआत तो घर से ही होती है"। येवला महाराष्ट्र के रहने वाले अज़हर शाह ने अपने कामों और अपने शब्दों से कुछ अलग करने का सोचा। गांधीजी के कथन, "वह परिवर्तन स्वयं बनो जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं," से सीखकर अज़हर ने इसे अपने जीवन का अहम हिस्सा बना लिया।
अज़हर को अपने साथ भेदभाव तब महसूस होना शुरू हुआ जब वह अमलनेर जलगाव से येवला वापस आये जहाँ उन्हें पहली बार एक धर्मस्वतंत्र/सेक्युलर देश में अल्पसंख्यक होने का एहसास कराया गया। उन्हें ये समझ में आया कि इस तरह के भेदभाव कैसे जीवन में मिलने वाले अवसरों पर असर डालते हैं। गुड़गांव में ISDS (एकीकृत कौशल विकास योजना) के एक व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम में काम करते हुए अज़हर ने देखा कि इस तरह के कार्यक्रम में कई महिलाएँ भाग लेती हैं लेकिन मुस्लिम महिलाएँ परिवार के विरोध, विधवा पुनर्विवाह पर रोक और शिक्षा में बाधाओं के कारण बड़े पैमाने पर हिस्सा नहीं लेती हैं, हालांकि इसे अक्सर धर्म की गलत समझ से सही ठहराया जाता है। उन्होंने यह भी सोचा कि कैसे लोग क़ुरआन/क़ुरान और संविधान दोनों को गलत तरह से समझते हैं। अज़हर कहते हैं कि पैगंबर मुहम्मद की पत्नी भी एक सफल उद्यमी थीं। उनका मानना है कि महिलाओं के लिए इतनी रोक-टोक समाज ने बनाई है धर्म ने नहीं।
अज़हर ने नासिक में एक ITI Industrial Training Institute (औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान) में 26 नवंबर को होने वाले संविधान दिवस समारोह में हिस्सा लिया। इस कार्यक्रम के बाद उन्होंने शिक्षा और संवैधानिक जागरूकता को बढ़ावा देने की दिशा में काम करने का मन बनाया। उन्हें लगा कि संविधान ही भेदभाव का मुकाबला कर सकता है और लोगों को एकजुट कर सकता है। यहाँ उन्होंने सीखा कि, "अगर लोगों के दिलों से नफरत मिटानी है तो उनके दिल में संविधान को बिठाना पड़ेगा"। येवला वापस आकर अज़हर ने औपचारिक शिक्षा, संवैधानिक साक्षरता और धार्मिक अध्ययन को बढ़ावा देने के अपने बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक मदरसा स्थापित किया। सबको एक साथ करने और लोगों में भाईचारा बढ़ाने के लिए अपने IQRA अरबी मदरसा में उन्होंने एक दूसरे धर्म की महिला श्रीमती अश्विनी काशी नाथ जगदाले को प्रिंसिपल बनाया। यह शिक्षा और समझ को बढ़ाने के लिए धर्म की सीमाओं को तोड़ने का एक उदाहरण बना।
लैंगिक समानता और संवैधानिक शिक्षा के प्रति अजहर का अटूट समर्पण तब सामने आया जब वो येवला में एक ऐसे परिवार के लोगों से मिले जो अपनी 16 साल की बेटी की शादी करने जा रहे थे। परिवार वालों का मानना था कि शादी से ही उसका भविष्य सुरक्षित हो सकता है। अज़हर ने उन लोगों से लगातार संपर्क बनाए रखा और संविधान द्वारा संरक्षण प्राप्त शिक्षा के अधिकार के बारे में बताया। अज़हर ने शिक्षा से आगे मिलने वाले संभावित अवसरों पर भी जोर दिया। धीरे धीरे उस परिवार को यह बातें समझ में आने लगीं और उन्होंने अपनी बेटी को आगे की पढ़ाई करने दी। आज वो एक वकील हैं और अपने पति के साथ मुंबई में रहती हैं। उनका शादीशुदा जीवन खुशहाल है और उनकी सफलता ने उनके परिवार की मानसिकता को बदल दिया है। अब वो शिक्षा की ताकत समझ गए हैं।
वी द पीपल अभियान और उनके पार्टनर NGO संविधान प्रचारक ने 2022 में चालीसगांव में CCA (संविधान से समाधान) प्रशिक्षण आयोजित किया। अज़हर इस कार्यक्रम में भाग लेने वालों में से एक थे जहाँ उन्होंने संविधान के सिद्धांतों को दैनिक जीवन से जोड़ने के व्यावहारिक तरीके सीखे। वह अपने गाँव जाकर संविधान के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए इन गतिविधियों का उपयोग करने लगे। उनके प्रयासों से एक बेहतरीन बदलाव आया क्योंकि लोगों ने सवाल पूछना, चर्चा में शामिल होना और अधिकारियों को जवाबदेह ठहराना शुरू कर दिया। अज़हर का ये सफर बहुत कठिनाइयों भरा रहा है। उन्हें उनके धर्म पर सवाल उठाने वाली अफ़वाहों, धमकियों और यहाँ तक कि उनके समुदाय के कुछ लोगों द्वारा अस्वीकार किए जाने का भी सामना करना पड़ा है। एक समय पर उन्हें अपना घर बेचना पड़ा लेकिन उनके परिवार के अटूट समर्थन और येवला में देखे गए छोटे लेकिन गंभीर बदलावों ने उनकी भावना को जीवित रखा। विरोध के बाद भी एक गौरवान्वित भारतीय मुस्लिम के रूप में पहचाने जाने का उनका सपना उनकी दृढ़ता को बढ़ाता है। अपनी शिक्षाओं के माध्यम से अज़हर ने 300 से अधिक छात्रों के साथ संपर्क किया और उन्हें यह एहसास दिलाने में मदद की है कि संविधान केवल एक डॉक्यूमेंट/दस्तावेज़ नहीं है बल्कि उनके अधिकारों का संरक्षक है। यह सम्मान और समानता दिलाने का रास्ता है। उनका काम मजबूत इच्छा रखने का सबूत है जो यह बताता है कि असली बदलाव तो घर से ही शुरू होता है और इसका प्रभाव पूरे विश्व में फैल सकता है।
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