समाज के लिए काम करने की इच्छा वंदना के मन में बहुत कम उम्र में ही आ गई थी। आज़मगढ़ जिले के अतरौलिया क्षेत्र में जन्मी और पली-बढ़ी वंदना अपनी माँ के साथ समूह बैठकों में भाग लेती थीं। इन बैठकों में शामिल महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय की कहानियों ने उनके भीतर एक चिंगारी पैदा की। भले ही वह उस समय काफी छोटी थी फिर भी उन्होंने इन चर्चाओं में शामिल होकर संवाद को जारी रखा।
अपनी शिक्षा पूरी करने के कुछ साल बाद जब वह किस मुद्दे पर पूर्णकालिक रूप से काम करने के लिए तैयार हुईं तो उन्होंने खुद को काफी सशक्त पाया। आज वह ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान (जीपीएस) के साथ काम करती हैं, महिलाओं को सशक्त बनाती हैं और उनके लिए चलाई जा रही प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी विभिन्न नीतियों और योजनाओं के बारे में जागरूक करती हैं।
क्षेत्र में निरंतर काम करते हुए उन्हें ‘वी द पीपल अभियान’ द्वारा आयोजित ‘संविधान से समाधान’ प्रशिक्षण के बारे में पता चला जिसमें उन्हें कानूनी और संवैधानिक ज्ञान प्राप्त हुआ। वह बताती हैं कि अपने अधिकारों के बारे में जानकर अब वह पहले से ज्यादा आत्मविश्वास महसूस करती हैं। वह अब जानती हैं कि कोई भी उन्हें या उनके आसपास किसी अन्य व्यक्ति को अपने अधिकारों का प्रयोग करने से नहीं रोक सकता है।
सशक्तिकरण की इस प्रक्रिया में वंदना कई बदलाव लाने में सक्षम रही हैं। अभी हाल ही में बैसपुर के लोगों से मिलने पर वंदना को एक गंभीर मुद्दे के बारे में पता चला। वहाँ सीवेज का पानी सड़कों पर बह रहा था जिससे लोगों को असुविधा हो रही थी। यह उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी जोखिम पैदा कर रहा था। साथ ही उन्हें यह भी पता चला कि काई बार बताने के बावजोद ग्राम प्रधान द्वारा इस पर कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। प्रशिक्षण से मिले ज्ञान की बदौलत वंदना ने आवाज उठाई। उन्होंने वहाँ के निवासियो को स्वस्थ जीवन जीने के अधिकार के बारे में बताया जो उन्हें राज्य द्वारा गारंटीकृत अधिकार के रूप में मिले हैं। वंदना ने लोगों को इस मुद्दे के समाधान के लिए खंड विकास अधिकारी कार्यालय (बीडीओ) को एक आवेदन पत्र लिखने के लिए प्रोत्साहित किया और उसमे मदद भी की । योजनाओं, नीतियों, लेखों और स्थानीय संदर्भ के बारे में अपने ज्ञान का प्रयोग करते हुए उन्होंने एक व्यापक आवेदन का मसौदा तैयार किया। आवेदन को औपचारिक रूप से शिकायत के रूप में दर्ज किए जाने से पहले ही ग्राम प्रधान और उनसे जुड़े लोगोंको इस बारे में पता चला और उन्होंने कार्यवाही का वादा किया। इससे पूरी प्रक्रिया में तेजी आई। इसके बाद सड़कों की सफाई की गई और सीवेज का निर्माण कार्य शुरू किया गया।
वंदना के प्रयासों और उनके व्यापक आवेदनों ने लोगों को आवास योजना के तहत आवास मिलने की प्रक्रिया शुरू करने में मदद की है। इसके अलावा संविधान को बेहतर ढंग से जानने से उन्हें क्षेत्र में होने वाले उत्पीड़न के मामलों से निपटने में मदद मिली है। अब तक वह 50 से अधिक लोगों को जागरूककरने और उन तक पहुंचने में सफल रही हैं।
अपनी इस यात्रा में वंदना को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा- एक नवविवाहिता के रूप में काम करने के लिए उनकी आलोचना की गई। लेकिन समुदाय के लिए काम करने के उनके अथक प्रयास जारी रहे। वो जानती थीं कि वह लोगों की भलाई के लिए जो कुछ भी कर रही हैं उसे जल्दी ही आसपास के लोग भी समझेंगे। वास्तव में ऐसा ही हुआ। वंदना अब अधिकारों से जुड़े मुद्दों को लेकर कानूनी कदम उठाने के लिए हर किसी की पसंदीदा व्यक्ति बन गई है।
प्रशिक्षण और बदलाव के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के दौरान उन्होंने महसूस किया कि हर किसी को अपने इच्छानुसार जीवन जीने, अपने मनचाहे निर्णय लेने और संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों का प्रयोग करने का अधिकार है। स्वतंत्रता एक ऐसा मूल्य है जिसका हर दिन अभ्यास करना चाहिए।
एक अगुवा/नेता के रूप में वंदना "संगठन में शक्ति है" के उद्देश्य को लेकर चलती हैं। वह लोगों को सशक्त बनाने, उन्हें आगे आने और जो उनका हक है उसके लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित करती है। वंदना के अपने शब्दों में, "ये हमारा हक है, इसे देकर कोई हम पे एहसान थोड़ी ना कर रहा है"
The above story has been written and published with the explicit consent of the individual involved. All facts presented are based on WTPA's direct interaction with the individual, ensuring accuracy and integrity in our reporting.
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