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मेघा छारी समाजिक न्याय की भावना को अभिव्यक्त करते हुए आशा और सहनशीलता का प्रतीक बनी है


“पहले अपनी लड़ाई भावनाओं के आधार पर लड़ती थी लेकिन अब अपनी लड़ाई संवैधानिक तरीके से लड़ना शुरू कर दिया है।”  मेघा  छारी इस बात को बेहद संजीदा और मजबूती से बोलती हैं क्योकि उन्होंने संविधान को अपने हक़ और समुदाय के साथ हो रहे अन्याय के खिलफ इस्तेमाल करना बखूबी शुरू कर दिया है।  मेघा छारी टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस में सामाजिक शिक्षा की पढाई कर रही हैं और वो अपनी समुदाय से पहली सदस्य हैं जो पोस्ट ग्रेजुएशन की पढाई कर रही है।  मेघा छारी बताती हैं कि वे मध्य प्रदेश के बेड़िया समुदाय से ताल्लुक रखती हैं और इस समुदाय को ब्रिटिश कल से संदिग्ध और अपराधी समुदाय माना जाता रहा है , भले ही दस्तावेजों में आपको न दिखाई दे लेकिन हकीकत ये है कि समाज अभी भी इस समुदाय को उसी नज़र से देखता है। 


मेघा छारी से बात करते हुए पता चला कि उनके समुदाय को सामाजिक बहिस्कार अथवा अस्वीकारता के कारण देह ब्यापार को अपना पेशा बनाना पड़ा और उसका मुख्य कारण ये है कि इस समुदाय के लोगो को कोई काम या फिर रोजगार नहीं देता।  देह ब्यापार के पेशे के तौर पर अपनाने के कारन  समाज में महिलाओं की स्थिति दयनीय है और 50 साल की उम्र के बाद उन्हें कोई काम नहीं मिलता।  उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं की स्थिति बद से बदतर होती जाती है और कई महिलाओं को उम्र के आखिरी पड़ाव में भीख मांगने पर मजबूर होना पड़ता है। एक घटना को याद करते हुए मेघा कहती हैं कि बेड़िया समुदाय की एक महिला अपने बच्चे का जन्म प्रमाणपत्र बनवाने गयी तो उन्हें गलियां दी गयी और बच्चे के पिता का नाम पूछा गया और चूँकि महिला देह ब्यापार के पेशे में थीं उन्हें खुद उस बच्चे के पिता का नाम नहीं पता था। इसके बाद कथित महिला को तिरस्कार और अपमान का सामना करना पड़ा। इलाके में कोई भी असामाजिक घटना होने पर पुलिस प्रसाशन द्वारा सिर्फ शक के आधार पर बेड़िया समुदाय को पुरुषों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया जाता है और सरकार और प्रसाशन द्वारा इस तरह का व्यवहार आम बात हो गयी है। 


मेघा आगे बताती हैं कि बचपन से उनके ऊपर शिक्षकों का दबाव होता था कि वो अपने बारे में और अपने समुदाय के बारे में लोगो को न बताएं क्योकि स्कूल में इस समुदाय के छात्रों के साथ गैर बराबरी का व्यवहार किया जाता है।  अपनी पहचान, गैर बराबरी, भेदभाव और प्रसाशनिक रवैये के कारण बेड़िया समुदाय की तकलीफ को मेघा खुद महसूस करती हैं और उनके मन में ये सवाल भी है कि यदि देश में देह व्यापर इतने बड़े स्तर पर है तो इसे कानूनी दर्जा क्यों नहीं मिलता ताकि इस पेशे से जुडी महिलाओं को भी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिल सके। 


मेघा ने कई सामाजिक संस्थाओं के साथ वोलिंटियर और फेलोशिप की है।  मेघा की आदर्श उनकी मां रोहिणी छारी हैं जोकि भूमि नाम की सामाजिक संस्था चलती है और बेड़िया समुदाय के मुद्दों पर काम करती हैं।  मेघा, की अपनी मन के संस्था भूमि  में एक सक्रीय भूमिका निभाती हैं और अपनी पढाई पूरी होने के बाद वह संस्था के साथ ज्यादा प्रभावी ढंग से काम कर पाएंगी। 


वी द पीपल अभियान ने भूमि संस्था के साथ ‘संविधान से समाधान’ ट्रेनिंग की जिसमे मेघा ने भी हिस्सा लिया।  मेघा कहती हैं कि अब वह संवैधानिक मूल्यों को अपने काम से बेहतर तरीके से जोड़ पाती हैं और उन्हें अब संवैधानिक तरीका भी पता है जिसके जरिये समुदाय के कल्याण और विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है। मेघा बेहद अविश्वास भरे लहज़े में बताती हैं कि अब वो अपनी लड़ाई को कानूनी तरीके से लड़ पाएंगी क्योकि इस देश का संविधान सबके अधिकारों को सुरक्षित रखता है और सबको एक नागरिक के रूप में बराबरी का अधिकार देता है।


The above story has been written and published with the explicit consent of the individual involved. All facts presented are based on WTPA's direct interaction with the individual, ensuring accuracy and integrity in our reporting.


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