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मनोरमा एक्का की साहसिक यात्रा

Writer's picture: We, The People AbhiyanWe, The People Abhiyan

लोहरदगा, झारखंड की रहने वाली मनोरमा एक्का आदिवासी समुदाय की एक शिक्षित और स्वतंत्र महिला हैं। उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका में पढ़ते और काम करते बिताया और फिलहाल झारखंड में अपने समुदाय के बीच रहकर काम कर रही हैं। वो कई अंतर्राष्ट्रीय समूहों और महिला मंचों की सदस्य भी हैं। सामाजिक और राजनीतिक रूप से सक्रिय रहते हुए वो 2008 में वार्ड कमिश्नर बनीं। हालांकि, 2013 और 2018 में चुनाव हार गईं, लेकिन उनका हौसला कभी नहीं टूटा। उनका मानना है कि नेतृत्व केवल पद पाने तक सीमित नहीं है; यह अपने समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाने का नाम है।

 

मनोरमा एक्का ने PHIA में काम नहीं किया बल्कि अजीम प्रेमजी द्वारा प्रायोजित एक फेलोशिप में फेलो के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्हें अपने भीतर छिपी नेतृत्व क्षमता का एहसास हुआ। उसके बाद उन्होंने “होप” नाम से अपना एक गैर सरकारी संगठन खोला जो लैंगिक अधिकारों और पर्यावरणीय परिवर्तन के लिए काम करता है। यह संगठन झारखंड के पांच जिलों में 11 पंचायतों में पाँच हजार से अधिक महिलाओं के साथ काम कर रहा है। उन्होंने इस संगठन के माध्यम से महिलाओं के सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण को एक मजबूत मंच प्रदान किया है।

 

मनोरमा एक्का का यह सफर इतना आसान नहीं था। एक आदिवासी समुदाय की महिला होने के नाते उन्हें लगातार भेदभाव का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं बल्कि अपने काम को जारी रखने के लिए उन्हें कई बार आर्थिक दिक्कतों और संसाधनों की कमी का भी सामना करना पड़ता है। वो भले ही अपना वेतन ना लें लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखती हैं कि वहाँ काम करने वाले सभी व्यक्तियों को अपने काम का मूल्य मिले।

 

मनोरमा एक्का संविधान को अपने जीवन का आधार मानती हैं। वी द पीपल अभियान के MOIC सत्र से उन्हें संविधान के महत्व को गहराई के साथ समझने की प्रेरणा मिली। इसके बाद उन्होंने अपने समुदाय के लोगों को संविधान के प्रति जागरूक करने का संकल्प लिया। अब वे महिलाओं को भारतीय संविधान पढ़ने, अपने अधिकारों को समझने और अपनी आवाज उठाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। मनोरमा एक्का महिला अधिकारों और विशेष रूप से आदिवासी अधिकारों की लड़ाई के लिए सदैव तत्पर रहती हैं। उन्होंने अपने क्षेत्र में ब्लॉक और जिले स्तर पर कई अधिकारियों के साथ संपर्क करके लोगों का काम करवाया है।

 

मनोरमा एक्का ने "होप" में विविधता और समता का वातावरण तैयार किया है। उनकी टीम विभिन्न क्षेत्रों और पृष्ठभूमियों से आती है लेकिन सभी का उद्देश्य एक ही है— समानता और सशक्तिकरण। उनके नेतृत्व का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि वे खुद को अपनी टीम के बराबर रखती हैं। पारंपरिक आदिवासी पहनावे में उनको देखकर अक्सर लोग उन्हें स्टाफ समझ लेते हैं लेकिन यही उनकी सादगी और समर्पण की पहचान है।

 

मनोरमा एक्का का मानना है कि झारखंड जैसे राज्य में आदिवासी मुख्यमंत्री का होना स्वाभाविक है क्योंकि यह राज्य 5वीं अनुसूची के अंतर्गत आता है और यहाँ की बड़ी आबादी आदिवासी है। उन्होंने हाल ही में एक इंजीनियर को इस विषय पर समझाते हुए बताया कि आदिवासी मुख्यमंत्री का होना झारखंड की सामाजिक संरचना और इतिहास के अनुकूल है। संविधान के प्रति उनके गहरे लगाव का प्रमाण यह है कि वे अपने कार्यालय में हमेशा इसकी एक प्रति रखती हैं। 26 नवंबर (संविधान दिवस) के मौके पर वे संगठन के सदस्यों को इसका महत्व समझाने की कोशिश करती हैं।

 

मनोरमा एक्का अपने समुदाय और अपनी आदिवासी पहचान को बनाए रखने की पूरी कोशिश करती हैं। उनका सपना है कि उनकी "होप" टीम और भी प्रशिक्षित और सशक्त बने। वे चाहती हैं कि उनकी टीम वी द पीपल अभियान के साथ प्रशिक्षण के द्वारा संविधान और अपने अधिकारों के प्रति और अधिक जानकारी हासिल करे ताकि वे अपने समुदाय की भलाई के लिए बेहतर काम कर सकें। मनोरमा एक्का जन कलेक्टिव अभियान से भी जुड़ना चाहती हैं।

 

मनोरमा एक्का की यह साहसिक यात्रा प्रेरणा से भरी है। उन्होंने अपने संघर्ष और मेहनत से यह साबित कर दिया कि सच्चे नेता के लिए पद महत्वपूर्ण नहीं होता, बल्कि समाज के लिए उनका योगदान ही उनकी पहचान बनाता है।


The above story has been written and published with the explicit consent of the individual involved. All facts presented are based on WTPA's direct interaction with the individual, ensuring accuracy and integrity in our reporting.

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