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बदलाव स्वयं से शुरू होता हैः सुधा की काम से जीवन में परिवर्तन की यात्रा


सुधा एक जुझारू युवा महिला हैं जो उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में अपने परिवार के साथ रहती हैं। वे ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान (GPS) के साथ काम करती हैं। बाईस साल की छोटी सी उम्र में सुधा महिलाओं के साथ बेरोजगारी, बच्चों की शिक्षा, आजीविका की कमी जैसे मुद्दों पर काम कर रही हैं और महिलाओं को सरकारी योजनाएँ समझने में मदद कर रही हैं। वे सरकारी योजनाओं तक महिलाओं की पहुँच बढ़ाने में मदद करती हैं तथा उनका लाभ दिलाने और उन्हें अपने अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए जरूरी दस्तावेजों को व्यवस्थित करके जमा करने में मार्गदर्शन करती हैं। वे समानता और स्वतंत्रता के मूल्यों पर दृढ़ता से विश्वास करती हैं और उनका पालन करती हैं।


सुधा ने महिलाओं को अपने जीवन के कई पहलुओं में कार्य करने के लिए प्रेरित किया है ताकि वे निर्धारित प्रक्रिया का पालन कर सकें और उन्हें वह मिल सके जिसकी वे हकदार हैं। ऐसी ही एक घटना हुई जिसमें एक महिला जिन्हें सुधा प्यार से ‘चाची’ कहती हैं उनके पास आईं और बताया कि उन्हें और कई अन्य महिलाओं को मनरेगा योजना के तहत उनके रोजगार के लिए भुगतान नहीं किया गया है। चाची शिकायत दर्ज कराना चाहती थीं जबकि अन्य महिलाओं ने इसे महत्व नही दिया। इस मामले को चाची ने मई 2023 से कई बार बैठकों में उठाया। अंत में, सुधा ने उन्हें शिकायत दर्ज कराने के लिए प्रोत्साहित किया । चाची को आश्चर्य हुआ कि उन्हें हेल्पलाइन से तत्काल प्रतिक्रिया मिली और तुरंत अपने बकाये का भुगतान मिला। सुधा याद करती हैं कि तब से 10-12 अन्य महिलाओं ने भी शिकायत दर्ज कराई है और उन्हें वह मिला है जिसकी वे हकदार थीं।


समाज पर सुधा का प्रभाव एक दिन का काम नहीं है। वह जिन 150 परिवारों के साथ काम करती हैं उनके साथ वह हर महीने बैठकें करती हैं। अपनी बैठकों में वह संवैधानिक अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए फिल्मों और खेलों जैसे विभिन्न साधनों का उपयोग करती हैं। ‘बोल बसंतो’ या ‘संविधान का निर्माण’ जैसी फिल्में लोगों को बेहतर ढंग से जुड़ने, मुद्दे को समझने, अधिकारों तथा कर्तव्यों को सीखने में मदद करती हैं।


अपने सामाजिक योगदान के अलावा सुधा को वी, द पीपल अभियान के साथ ‘संविधान से समाधान’ प्रशिक्षण ने बहुत प्रभावित किया है। उनके घर में लैंगिक समानता और संवैधानिक अधिकारों के बारे में अक्सर बातचीत होती रहती है। जब सुधा के पिता उनके बाहर आने जाने और काम करने के बारे में असहजता व्यक्त करते हैं तो वह अपने पिता से कहती हैं कि "लड़का और लड़की में कोई फर्क नहीं है अब" वह मानती हैं कि हर किसी को बाहर जाने और काम करने का समान अधिकार है।


सुधा का व्यक्तिगत विकास उनके स्वभाव में भी स्पष्ट है। वह उस समय को याद करती हैं जब वह छोटी-छोटी बातों पर भी गुस्सा हो जाती थीं। सुधा प्रशिक्षण के बाद वह अधिक जागरूक हो गईं कि और यह मानती हैं कि हर किसी को अपनी राय रखने और चीजों को अपने तरीके से करने का अधिकार है जिसे व्यक्तित्व का अधिकार भी कह सकते हैं। इसने उन्हें अधिक ध्यान से सुनने और रचनात्मक चर्चा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया है जिससे लोगों को बेहतर ढंग से शिक्षित करने की उनकी क्षमता बढ़ी है।


सुधा में आए इस परिवर्तन का प्रभाव तब विशेष रूप से स्पष्ट हुआ जब उनके पिता गंभीर रूप से घायल हो गए थे। कोविड महामारी के दिनों में उनके पिता चौराहे पर एक दुर्घटना का शिकार हो गए जिससे उनके इलाज पर लगभग आठ लाख का चिकित्सा खर्च आया। जब परिवार को पता चला कि वाहन का मालिक पास में ही रहता है तो उन्होंने मुआवजे की मांग की लेकिन उसने भुगतान करने से इनकार कर दिया। परिवार का गुस्सा तो स्पष्ट था लेकिन मामले को हल करने के कई असफल प्रयासों के बाद अंत में उन्होंने मुकदमा दायर किया। मामला अभी भी चल रहा है और सुधा लगन मामले की पैरवी करती है; उन्हें कानूनी प्रणाली में विश्वास है। वह संविधान और कानून की शक्ति के प्रति उनके गहरे सम्मान को उजागर करते हुए अपने परिवार को यह भी याद दिलाती हैं कि 'यह हमारा सबसे अच्छा उपाय है और लड़ने का कोई मतलब नहीं होगा’।

सुधा की जीवन यात्रा परिवर्तनकारी भले ही रही लेकिन यह चुनौतियों से मुक्त नहीं रही। काम करते हुए उन्हें अक्सर ही ऐसे स्थानीय निहित स्वार्थों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है जो नहीं चाहते कि वह दूसरों को सशक्त बनाने के अपने मिशन में सफल हों। फिर भी, अपने काम के लिए उनके निरंतर प्रयासों और जुनून ने उन्हें आगे बढ़ने की ताकत दी है। उन्होंने अब तक 150 परिवारों के साथ काम किया है और अपने काम के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को प्रभावित करना जारी रखा है।


The above story has been written and published with the explicit consent of the individual involved. All facts presented are based on WTPA's direct interaction with the individual, ensuring accuracy and integrity in our reporting.



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