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बदलाव के लिए जरुरी है...नागरिको का भोलाभाला दृष्टीकोण


“क्या आप दोनो का खाना अलग होता है?”  ये सवाल है राजस्थान के सवाई माधोपुर में  रहने वाले भोला शंकर का | जब भी भोला गावं में किसी के घर जाते है ओर पति पत्नी में भेदभाव की चीजे देखते है तो इतने ही सीधे सरल ओर उनके नाम जैसे बिलकुल भोले सवाल पूछ कर लिगं आधारित भेदभाव के बर्ताव पर लोगों को सोचने पर मजबुर करते हैI भोला शंकर ग्रामीण शिक्षा केंद्र संस्था से जुड़कर करीबन 60 युवतियों ओर उनके परिवार के लोगो के साथ काम करते हैI जीवन कौशल को इन युवतियों मे ढालते वक्त भोला सामाजिक  परम्परा ओर भेदभाव के रिती रिवाजो को नकारते हुए संवेधानिक मूल्यों का ध्यान रखते हैं। ये बदलाव उनमें संविधान की कार्यशाला में शामिल होने के बाद आया। यह बदलाव सिर्फ उनके काम तक सीमित नहीं है बल्कि उनके निजी जीवन में भी लागू होता है। भोला शंकर के परिवार में उनकी मां, पत्नी और तीन बेटियां हैं। उनकी सबसे बड़ी बेटी अभी 12-13 साल की है। स्कूल की छुट्टी में जब  वह अपने पिता के साथ उनके कार्य स्थल गई। थी तब उसे पहली बार माहवारी आई। ऐसे समय में मां का साथ न होना लड़कियों के लिए मुश्किल होता है, और राजस्थान जैसे राज्य में माहौल इतना खुला नहीं है। जब भोला ने बेटी के चेहरे के भाव देखे तो उन्होंने पूछताछ की और बेटी ने बताया कि उसे खून आ रहा है। भोला ने उससे कहा “घबराने की जरूरत नहीं है” कहते हुए सैनिटरी नेपकिन दिया और उसका इस्तेमाल करना भी सिखाया। घर जाकर बेटी ने अपनी मां को यह सब बताया तो मां ने भी समझाया कि पिता से इस बारे में बात करना कोई दिक्कत नहीं है। जहां माहवारी को अशुद्ध माना जाता है और महिला-पुरुष में भेदभाव होता है, वहां एक पिता की यह पहल अपने परिवार और बच्चों के जीवन में समानता और आदर भाव को सम्मानित करती है। भोला शंकर अपने जीवन में मूल्यों के आधार पर बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं।


लेकिन भोला शंकर सिर्फ सीधे, सरल और भोले तरीके ही नहीं अपनाते, बल्कि नागरिकता की शिक्षा से चलते हुए कुछ कठोर तरीकों को भी अपनाते नजर आते हैं।

एक दिन भोला बिना हेलमेट के मोटरसाइकिल से घर से निकले तो उन्हें ट्रैफिक पुलिस ने पकड़ लिया। पुलिस के कहने पर उन्होंने अपना ड्राइविंग लाइसेंस और गाड़ी के कागज दिखाए और हेलमेट न पहनने का चालान देने के लिए तैयार हो गए। लेकिन तभी पुलिसकर्मी ने उनकी गाड़ी की चाबी निकाल ली और अपने सीनियर से कहा, "साहब, इससे हजार रुपये ले लीजिए, यह बहुत बोलता है," और भोला को सीनियर के पास भेज दिया।

भोला भी डटकर खड़े रहे और बोले, "मेरे हेलमेट न पहनने का जुर्माना सिर्फ 200 रुपये है, आप हजार रुपये किस बात के मांग रहे हैं? और मुझे 200 रुपये की रसीद भी चाहिए।" यह सुनकर सीनियर अधिकारी भड़क गया और रसीद देने से मना कर दिया, लेकिन जब भोला ने बताया कि यह सब उनके फोन में रिकॉर्ड हो रहा है और इस गलत व्यवहार के खिलाफ वह कार्रवाई करेंगे, तब कहीं जाकर उन्हें रसीद मिली।


भोला शंकर कहते है की “हमको हमारे अधिकार मालूम होना चाहिए जो मैंने संविधान के प्रशिक्षण से सिखा ओर सरकारी तंत्र/यंत्रणा से गलत नही तो अच्छे मतलब भले तरीके से लड़ पाया” 

भोला शंकर ने छोटी-छोटी घटनाओं में संवैधानिक मूल्यों का उपयोग कर बदलाव की पहल की है। वे कहते हैं कि हमें संवैधानिक मूल्यों के आधार पर जीवन जीना चाहिए, जो भेदभाव से मुक्त हो। उन्होंने दिखाया कि सही तरीके से अधिकार पाने की खुशी कुछ अलग ही होती है।


सामाजिक या प्रशासनिक व्यवस्था में छोटे-छोटे प्रयास करके भोला शंकर आज एक क्रियाशील नागरिक की भूमिका अदा कर रहे हैं। क्या आप भी अपनी जगह छोटे-छोटे प्रयास करके भोला शंकर जैसे क्रियाशील नागरिक बनना चाहेंगे?


The above story has been written and published with the explicit consent of the individual involved. All facts presented are based on WTPA's direct interaction with the individual, ensuring accuracy and integrity in our reporting.


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