मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के एक छोटे से गांव परतापपुर में रहने वाली भानु एक निडर और समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनका जीवन इस बात का सबूत है कि इंसान अगर अपने डर पर काबू पा ले तो वह कुछ भी हासिल कर सकता है।
भानु एक दलित परिवार से हैं। उनके परिवार में आठ बहनें और दो भाई हैं। दलित समुदाय से होने के कारण उन्हें समाज में भेदभाव और मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उनके समुदाय में लड़कियों को पढ़ने और काम करने से रोका जाता था। लेकिन भानु ने इन चुनौतियों का सामना किया और अपनी पढ़ाई पूरी की। उन्होंने समाज कार्य में पीजी (MSW) की डिग्री हासिल की।
भानु ने जब समाज के लिए काम करना शुरू किया तो उनकी जाति की वजह से लोग उनका अनादर करते थे। उन्होंने अपनी पहचान छिपाकर पहले लोगों के साथ विश्वास बनाया और बाद में अपनी असली पहचान बताई। इस तरह वह महिलाओं, बच्चों और युवाओं के साथ गहरा रिश्ता बना पाईं।
भानु समाज में बदलाव चाहती हैं और इसके लिए वो पूरा प्रयास करती हैं। उन्होंने कभी हार न मानने की ठानी और इसी सोच के साथ समाज में कई बड़े मुद्दों पर काम किया। उन्होंने सड़क बनवाना, यौन उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई लड़ना, बच्चों की शिक्षा की वकालत करना, दलित और आदिवासी लोगों को उनका अधिकार दिलाना और महिलाओं के स्वास्थ्य जैसे कई क्षेत्रों में काम किया।
उनकी सबसे बड़ी लड़ाई तब थी जब उन्होंने खुद के साथ हुए यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाई। एफआईआर दर्ज कराने के बाद उन्हें धमकियां मिलीं लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। चार साल की लंबी और कठिन लड़ाई के बाद आखिरकार अपराधी को 10 साल की सजा हुई। भानु कहती हैं कि, "अगर मैं खड़ी नहीं होती तो उन महिलाओं को निराश करती जो मुझसे प्रेरणा लेती हैं।"उन्होंने अपने साथ-साथ स्वाधिकार के सहयोग से अपनी तरह कई महिलाओं और लड़कियों को यौन उत्पीड़न और महिला हिंसा से मुक्त करवाया है। इसमें बुंदेलखंड के 65 यौन उत्पीड़न और महिला हिंसा एवं एससी, एसटी एक्ट और पोक्सो आदि के मामलों की एडवोकेसी की और उनके खिलाफ आवाज उठाई। इनमें से 5 पीड़ितों को लगातार साथ दिया और एडवोकेसी की, जिससे आरोपियों को सजा हुई और पीड़ितों को न्याय मिला। उन्हें गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार मिला और इसी के साथ राहत राशि भी दिलवाई, ताकि वे अपना जीवन फिर से शुरू कर सकें।
संवैधानिक अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में भानु की समझ ने उनके काम को और बेहतर बनाया है। उन्होंने 2019 में PHIA फेलो के रूप में वी द पीपल अभियान (WTPA) के साथ संविधान से समाधान प्रशिक्षण में भाग लिया। इस प्रशिक्षण से उनके आत्मविश्वास और कौशल में बढ़ोत्तरी हुई। संविधान और अधिकारों के बेहतर ज्ञान और समझ के साथ उन्होंने अधिक व्यापक और प्रभावी ढंग से अधिकारियों से बात की और उन्हें काम करने पर मजबूर किया। वो अपने समुदाय के लोगों को भी संविधान के बारे में बताती हैं और उनकी ज़रूरतों को समझते हुए उन्हें अपने अधिकार दिलाने में मदद करती हैं।
उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि पन्ना जिले के शिरशो भान गांव में सड़क की समस्या का समाधान करवाना था। गांव में सिर्फ़ एक कच्ची सड़क थी जो उसे पड़ोसी गांवों से जोड़ती थी। बारिश के मौसम में इस सड़क पर पानी भरा रहता था जिससे छात्रों को स्कूल जाने में दिक्कत होती थी। भानु ने अपने समुदाय के साथ मिलकर स्थानीय अधिकारियों को पत्र लिखा। उनके लगातार दबाव और प्रयासों के बाद आखिरकार सड़क निर्माण कराया गया जिससे लोगों को बहुत फायदा हुआ।
पिछले कुछ सालों में भानु ने 5000 से ज़्यादा लोगों के साथ काम किया है और अभी 500 से अधिक लोगों के साथ वो जुड़ी हुई हैं जो उनसे सलाह चाहते हैं। अपने अनुभवों के बाद भी वह खुद को हमेशा एक शिक्षार्थी के रूप में ही देखती हैं। वो अपने समुदाय की बेहतरी के लिए हमेशा प्रयास करती हैं तथा साहस, विनम्रता और मजबूती के साथ वह न्याय के लिए अपनी लड़ाई जारी रखती हैं।
The above story has been written and published with the explicit consent of the individual involved. All facts presented are based on WTPA's direct interaction with the individual, ensuring accuracy and integrity in our reporting.
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