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न्याय के लिए अनिल की लंबी और कठिन लड़ाई!


अनिल गवासने  योद्धा हैं, एक दृढ़ योद्धा। वो यह मानते हैं कि उनकी सफलताएँ असफलताओं से बहुत कम हैं लेकिन फिर भी "हिम्मत नहीं हारनी है।" वो कहते हैं, कम से कम लोग समझें कि, एक ऐसा आदमी भी है जो रास्ते का कांटा बनता है। यह भी ज़रूरी है।

अनिल की न्याय के लिए लड़ाई तब शुरू हुई जब वह 2011 में पुणे से अपने छोटे से गांव मालवंडी तालुका बार्शी जिल्हा सोलापूर जिले वापस लौटे। उनके पिता एक दिहाड़ी मजदूर थे, काफ़ी कोशिश के बावजूद, उनको जो लाब मिलना चाहिए था वे उस लाभ को  प्राप्त किए बिना मर गए । अपने दिवंगत पिता की इस अन्यायपूर्ण स्थिति ने उन्हें सक्रियता की ओर प्रेरित किया। जैसे-जैसे उन्होंने अपने गांव की स्थिति को समझना शुरू किया उन्हें एहसास हुआ कि मूल समस्या यह है कि सभी प्रमुख संसाधन जिनमें ग्राम पंचायत के माध्यम से आने वाले संसाधन भी शामिल हैं वे कुछ ही  भूस्वामियों के नियंत्रण में हैं।

उनका काम अपने गांव की स्थिति सुधारने और पंचायत से भ्रष्टाचार हटाने पर केंद्रित है ताकि अधिकारों का समान वितरण हो सके। अनिल किसी संगठन से नहीं जुड़े है, वह संविधान प्रचारक आंदोलन का हिस्सा हैं। उन्होंने अपने दम पर 7-8 आंदोलन किए हैं जिनमें सफाई, आंगनवाड़ी, मनरेगा मजदूरी, स्थानीय स्कूल के लिए पीने का पानी, गांव की सड़क आदि शामिल हैं। इन में से सभी प्रयास सफल नहीं हुए। हां परंतु पीने के पानी के लिए आर ओ लगाया गया, और जो सड़क नहीं थी उसे बनाया गया। हालांकि यह सड़क अभी भी कच्ची है जिसे वे पक्की सड़क में बदलवाने के लिए लड़ रहे हैं। उनका सबसे बड़ा आंदोलन पंचायत से भ्रष्टाचार को हटाना है जिसकी शुरुआत २० जुलाई २०२२ को हुई थी और वह  लोगों के निहित स्वार्थों से लड़ रहे हैं।


अपने आंदोलनों और जनसभाओं के ज़रिए उनकी पहुँच अपने गांव, तालुका और जिले के लोगों  हैं। उनके गांव के ज़्यादातर लोग उनके आंदोलनों और जनसभाओं में आते हैं। तालुका और जिले के स्तर पर उनके पास लगभग 30 लोग ऐसे हैं जो समय-समय पर उनके साथ काम करते हैं। लोगों तक पहुँचने का एक और तरीका  उन्होंने इस्तेमाल किया है। उन्होंने अपनी पत्नी को एनआरएलएम योजना के अंतर्गत चलाए जाने वाले उम्मीद कार्यक्रम के ज़रिए महिला बचत (एसएचजी) बनाने के लिए प्रेरित किया है। इन समूहों के ज़रिए उन्होंने 100-150 परिवारों को सहायता पहुँचाई  है। वे इस काम में उनकी मदद करते हैं, उन्हें सलाह देते हैं कि ऐसे एसएचजी के लिए कौन-सी योजनाएँ उपलब्ध हैं और इन समूहों की महिलाएँ उनका अपने फ़ायदे के लिए कैसे इस्तेमाल कर सकती हैं।


वी, द पीपल अभियान से प्रशिक्षण के बाद संविधान के प्रति उनका सम्मान बढ़ा है और एक नागरिक के रूप में अपनी भूमिका को वे बेहतर ढंग से समझने लगे हैं। उन्हें बेहतर समझ है कि सरकार कैसे काम करती है। उन्हें यह भी एहसास हुआ कि उनकी लड़ाई व्यक्तिगत नहीं है, उनकी लड़ाई व्यवस्था से है, प्रशासन से है। दरअसल, वे प्रशासन को सूचित रखने के लिए नए-नए तरीके खोजते हैं ताकि उनके लिए खतरे भी कम हो जाएं। जब भी वे किसी आंदोलन पर जाते हैं तो वे सभी अधिकारियों को एक पत्र लिखते हैं जिसमें उन लोगों के नाम होते हैं जिन्होंने उन्हें धमकी दी है।


WTPA प्रशिक्षण के बाद से सबसे महत्वपूर्ण बदलाव उनकी मानसिकता में आया है। उन्हें समझ में आया कि न्याय और समानता के लिए लड़ना उनकी ज़िम्मेदारी है, संविधान उनसे लड़ने की माँग करता है। साथ ही, अब वे मानते हैं कि नागरिक ही असली मालिक हैं। पहले जब कोई अधिकारी उनसे पूछता था- "तू कौन है" तो वे डर जाते थे। अब, वह एक नागरिक के रूप में अपने अधिकारों की शक्ति को गहराई से महसूस करते हैं। वे जानते हैं कि सरकार  नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा औरं उनके कल्याण के लिए है । इसलिए वे पहले से कहीं ज़्यादा आत्मविश्वास महसूस करते हैं और दृढ़ता से कहते हैं "मुझमें हिम्मत आ गई है"!


The above story has been written and published with the explicit consent of the individual involved. All facts presented are based on WTPA's direct interaction with the individual, ensuring accuracy and integrity in our reporting.

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