नितिन घोपे संविधान के अपने ज्ञान से लोगों को मजबूत/सशक्त बनाना चाहते हैं। छात्रों, शिक्षकों और आदिवासी समुदायों के अधिकारों के लिए वो लगातार प्रयास करते रहते हैं। उनका मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति को मौलिक अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए और संस्थानों को न्याय/निष्पक्षता और समानता बनाए रखनी चाहिए।
नितिन की सबसे असरदार/प्रभावशाली कोशिशों/पहलों में से एक महाराष्ट्र में आदिवासी समुदायों के साथ उनका काम/फील्डवर्क रहा है। वह अक्सर ऐसे व्यक्तियों से मिलते हैं जिनको स्वास्थ्य सेवा, बिजली या राशन जैसी आवश्यक सेवाएँ नहीं मिल पा रही हैं। संस्थाओं से मदद ना मिलने की वजह से महिलाएँ घर पर ही कठिन/खतरनाक परिस्थितियों में बच्चों को जन्म देती हैं। नितिन ने एक ऐसी जगह बनाई है जहाँ गाँव वाले मिलकर अपनी समस्याएं साझा करते हैं और जरूरत के हिसाब से अपने संवैधानिक अधिकारों का उपयोग करते हैं।
हालांकि, संवैधानिक जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए नितिन का मिशन आदिवासी क्षेत्रों से बाहर भी फैला हुआ है। कोविड-19 महामारी के दौरान नितिन ने अपने संगठन शिक्षण क्रांति के माध्यम से संवैधानिक अधिकारों के बारे में रोज व्हाट्सएप मैसेज/संदेश भेजना शुरू किया जो धीरे-धीरे देश भर में हजारों लोगों तक पहुंचने वाले साप्ताहिक अपडेट में बदल गया। वे संविधान को एक गतिशील/जीवंत डॉक्यूमेंट/दस्तावेज मानते हैं। संविधान का ज्ञान होने से बुनियादी सेवाओं को सुरक्षित करने, सरकारी योजनाओं को समझने और सामुदायिक मुद्दों को हल करने के लिए अधिकारियों के साथ बातचीत करने में आसानी होती है।
लेकिन नितिन की यात्रा यहीं से शुरू नहीं हुई। नितिन 2000 के दशक से ही सक्रिय रहे हैं जब वे एक छात्र थे। उन्होंने परीक्षा परिणामों/एक्जाम रिजल्ट में होने वाली देरी और अनुचित फीस संरचनाओं के खिलाफ आवाज उठाई। रिजल्ट में देरी के कारण कई स्टूडेंट प्रवेश परीक्षा देने से चूक गए। नितिन ने इस मामले को उठाया, आवेदन/याचिकाएँ लिखीं, जागरूकता फैलाई और अंततः इसे दुरुस्त करवाने में सफलता हासिल की।
2012 में नॉर्थ महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी में भूगोल के सहायक प्रोफेसर के रूप में शामिल होने के बाद नितिन को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। भ्रष्टाचार के कारण लगभग दो साल तक उनका वेतन रुका रहा। उन्होंने पीछे हटने के बजाय इस आर्थिक/वित्तीय संकट का सामना किया और इस मुद्दे को सुलझाने के लिए मानवाधिकार आयोग में अपील की।
हाल ही में एक तेज रफ्तार गाड़ी से नितिन के पिता का एक्सीडेंट हो गया जिससे वो एक बार फिर मुसीबत में आ गए। स्थानीय पुलिस की ओर से उन्हें कोई मदद नहीं मिली। दो हफ्ते के बाद नितिन ने सीधे पुलिस अधीक्षक को सबूत भेजा जिसका उन्हें तुरंत जवाब मिला। हालांकि मामले को देखने वाले पुलिस हवलदार ने उन्हें धमकाने की कोशिश की और कोरे कागज पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा। नितिन कानून का हवाला देते हुए निडर होकर अपनी बात पर अड़े रहे। मामला अभी चल ही रहा है लेकिन नितिन पुलिस की विफलताओं को उजागर करने के लिए आरटीआई दाखिल करते रहते हैं।
सिस्टम/व्यवस्था में खामियों के साथ इन शुरुआती अनुभवों ने संवैधानिक जागरूकता के प्रति उनके जुनून को और मजबूत किया जिससे उन्हें यह सीख मिली कि अधिकारों का ज्ञान अन्याय के खिलाफ सबसे शक्तिशाली हथियार है। उनका ध्यान समुदायों और सिस्टम/व्यवस्था के बीच की खाई को पाटने पर है चाहे वह महाराष्ट्र के गांवों में हो या विश्वविद्यालय के अंदर। अपने काम के माध्यम से, वह एक-एक कदम आगे बढ़ते हुए सिस्टम/व्यवस्था में असमानताओं को खत्म करना जारी रखते हैं।
The above story has been written and published with the explicit consent of the individual involved. All facts presented are based on WTPA's direct interaction with the individual, ensuring accuracy and integrity in our reporting.
संविधान देश के हर इन्सान तक जाना चाहिये और इसशे लोगो को उनके अधिकार प्राप्त होने चाहिए
इस मक्सद से नितीनजी काम कर रहे है मेरी तरफ से बहुत बधाई.💐💐💐
Nitin Ghope संविधान के पथ पर चलने वालो मे एक सच्चे भारतीय नागरिक है. शिक्षा तथा अन्य भ्रष्ट व्यवस्था मे सुधार के लिये उनका प्रयास सराह निय है तथा हमेशा प्रयत्नरत है..