नरगिस: समाज में बदलाव की संवैधानिक पहल
- We, The People Abhiyan
- Apr 8
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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रहने वाली नरगिस, अपने समुदाय में युवा महिला नेतृत्व के आदर्श के रूप में देखी जाती हैं। उनका सफर बेहद मुश्किल, लेकिन शानदार रहा है। नरगिस का सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर योगदान समाज में लड़कियों को शिक्षित करने और उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में महत्वपूर्ण है। वह न केवल अपने समुदाय में बदलाव की लहर ला रही हैं, बल्कि संविधान को एक सशक्त औजार के रूप में इस्तेमाल करके सामाजिक मुद्दों को सुलझाने का काम भी कर रही हैं।
नरगिस का जीवन एक प्रेरणा है। उन्होंने अपनी शिक्षा के लिए खुद संघर्ष किया और स्कूल ड्रॉपआउट होने के बाद भी कभी हार नहीं मानी। अपनी पढ़ाई को फिर से शुरू करते हुए, उन्हें सहयोग संस्थानाम की सामाजिक संस्था का साथ मिला, जो उनके जीवन में एक अहम मोड़ साबित हुआ। इस संस्थाने उन्हें 'चैंपियन गर्ल' के रूप में चयनित किया और बाद में उन्हें संस्थाकी फेलोशिप प्रोग्राम में भी शामिल किया गया।
क्योंकि नरगिस एक ऐसे समुदाय से हैं, जहां लड़कियों की शिक्षा और सामाजिक योगदान को बढ़ावा नहीं दिया जाता, उन्हें सामाजिक रूढ़िवादी मान्यताओं को तोड़ते हुए काम करना पड़ा। इस दौरान, उन्होंने स्कूल ड्रॉपआउट लड़कियों को पहचानने और उन्हें शिक्षा के रास्ते पर लाने की दिशा में कई पहलें कीं। नरगिस बताती हैं कि उन्होंने संस्थागत और व्यक्तिगत दोनों स्तरों पर अपने प्रयासों को जारी रखा, और यह उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य बन गया।
नरगिस, मुस्लिम समुदाय से होने के कारण, जब उन्होंने गैर-मुस्लिम समुदाय के साथ काम करना शुरू किया, तो उन्हें कई प्रकार के पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ा। एक उदाहरण के रूप में, उन्हें यह शर्त दी गई कि यदि वह समुदाय के साथ काम करना चाहती हैं, तो पहली बैठक मंदिर में करनी होगी। नरगिस ने खुशी-खुशी इस शर्त को स्वीकार किया। उन्होंने धार्मिक पूर्वाग्रहों को तोड़ते हुए यह साबित किया कि समाज में बदलाव लाने के लिए धर्म और विश्वास के भेद को नकारा जा सकता है। उनकी इस पहल को समुदाय में सराहा गया, और उन्हें भरोसा और सहयोग भी मिला।
नरगिस के कार्यों में एक अहम मोड़ 'वी द पीपल' अभियान के संविधान से समाधान ट्रेनिंग से आया। इस ट्रेनिंग ने उनके काम करने के तरीके और दृष्टिकोण में बदलाव किया। अब नरगिस हर मुद्दे को संवैधानिक दृष्टिकोण से देखती हैं और उसी आधार पर समाधान की कोशिश करती हैं। उन्होंने संविधान को समाज में चर्चा का विषय बनाया और खुद भी इन संवैधानिक मूल्यों को जीवन में अपनाया।
एक घटना को याद करते हुए, नरगिस ने बताया कि जब उनके समुदाय की लड़कियां मतदाता पहचान पत्र बनवाने गईं, तो उन्हें धार्मिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। अधिकारी ने यह दावा किया कि उनके पते गलत थे, जबकि उन्हीं पते पर माता-पिता के पहचान पत्र पहले ही बन चुके थे। नरगिस ने नागरिक अधिकारों का हवाला देते हुए अधिकारियों से कहा कि लोकतंत्र में मताधिकार उनका संवैधानिक हक है। संविधान का संदर्भ देने पर उन्हें सफलता मिली और अंततः सभी लड़कियों के मतदाता पहचान पत्र बनवाए गए।
नरगिस अब सामुदायिक मुद्दों को सुलझाने के लिए संवैधानिक प्रावधानों और संबंधित कानूनों का सहारा लेती हैं। उनका मानना है कि संविधान समाज के हर वर्ग को समान अधिकार देने का अधिकार देता है, और वह इसे लागू करने के लिए खुद को काफी सशक्त महसूस करती हैं।
शिक्षा और नागरिक अधिकारों के लिए उनके प्रयास जारी हैं, और वह अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए निरंतर काम कर रही हैं। नरगिस एक आदर्श उदाहरण पेश करती हैं कि किस तरह संविधान और सशक्त सोच के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।
The above story has been written and published with the explicit consent of the individual involved. All facts presented are based on WTPA's direct interaction with the individual, ensuring accuracy and integrity in our reporting.
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