जोगीपुर की रहने वाली मधु ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान (जी. पी. एस.) की एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे एक साहसी और स्वतंत्र महिला हैं, मधु बंधुत्व और स्वतंत्रता के संवैधानिक मूल्यों को गहराई से मानती हैं। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के विभिन्न गाँवों में अनगिनत परिवारों को प्रभावित करते हुए सामाजिक कार्य करना उनका जुनून है। मधु का मिशन महिलाओं के सशक्तिकरण, शिक्षा और स्वास्थ्य पर केंद्रित है।
वी, द पीपल अभियान (डब्ल्यूटीपीए) से प्रेरित होकर ‘संविधान से समाधान’ प्रशिक्षण में भाग लेने के बाद मधु ने अपनी मासिक बैठक में संविधान के सार को शामिल करने का फैसला किया है। ऐसी बैठकें या तो कोई गीत या प्रस्तावना के पाठ के साथ शुरू होती हैं जिसके बाद संवैधानिक अधिकारों और मूल्यों पर चर्चा होती है।
ऐसी ही एक मीटिंग के दौरान मधु का सामना नूरजहां से हुआ जो बैठकों में आने या अपने मुद्दों को उठाने में बहुत हिचकिचा रही थी। आखिरकार, एक दिन वह बैठक में आई और उसने बताया कि उसे मनरेगा योजना के तहत 10 दिनों का बकाया वेतन नहीं मिला है और उसका रोजगार कार्ड भी गायब है। वह किसी भी तरह की शिकायत दर्ज कराने से डरती थी, उसे अधिकारियों द्वारा जांच किए जाने का भी डर था। नूरजहां ने अपनी समस्या के समाधान के लिए समूह में यह बात रखी। वहाँ उपस्थित कुछ महिलाएं उनके समर्थन में उठीं और नूरजहाँ को आश्वासन दिया कि वे मदद के लिए हमेशा तैयार हैं। इसके बाद शिकायत दर्ज कराने के लिए एक कॉल किया गया और उन्हें उन दस्तावेजों के बारे में सूचित किया गया जिनकी उन्हें आवश्यकता होगी। इसके बाद, सभी महिलाएं नूरजहाँ के घर वापस गईं और उसके रोजगार कार्ड और खाते के विवरण जैसे संबंधित दस्तावेजों को खोज निकाला । शिकायत दर्ज कराने के 14 दिनों के भीतर ही नूरजहाँ को उसका बकाया वेतन मिल गया। इस अनुभव ने उन्हें बैठकों में एक सक्रिय प्रतिभागी के रूप में बदल दिया और उन्हें अधिकारियों से निपटने के लिए आत्मविश्वास प्रदान किया।
मधु का दृढ़ विश्वास है कि लोग अपने दैनिक जीवन से संबंधित मूल्यों को बेहतर ढंग से समझते हैं। इसे स्पष्ट करने के लिए वह अक्सर अनुच्छेद 21-जीवन के अधिकार का उल्लेख करती हैं। उनकी एक बैठक में प्रतिभागियों ने एक मुद्दा साझा किया । जिनके पास राशन कार्ड थे उन्हें प्रति कार्ड 2 किलो कम राशन दिया जा रहा था। मधु ने उन्हें भोजन के अधिकार के बारे में बताया। उन्होंने समझाया कि भोजन तक पहुंच उनके जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है न कि अधिकारियों द्वारा दिया गया कोई दान। मधु ने उन लोगों को राशन की दुकान पर जाने और अपने 5 किलो राशन को माँगने के लिए प्रोत्साहित किया। मधु के मार्गदर्शन से एक महिला को अपना राशन कार्ड प्राप्त करने और सूची में अपना नाम जुड़वाने में भी सहायता मिली।
मधु दूसरों को अपने जीवन में बंधुत्व जैसे मूल्यों का अभ्यास करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। वह दूसरों को अपनी शिकायतों को लेकर खुद से आवाज़ उठाने के लिये सक्षम बनाती है, जी. पी. एस. के साथ काम करते हुए उन्होंने लोगों को एकजुट करने के लिए काम किया है, उन्हें सरकारी रोजगार योजनाओं के तहत पंजीकरण कराने में, तहसील (एक स्थानीय प्रशासनिक प्रभाग) तक यात्रा की लागत वहन करने में, और लोगों को इस दौरान एक दूसरे को अलग अलग तरीक़े से सहायता करने के लिए प्रोत्साहित किया है।
मधु का दैनिक जीवन बंधुत्व और स्वतंत्रता के मूल्यों का प्रमाण है। वह समुदाय की भावना को बढ़ावा देने में विश्वास करती हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि क्षेत्र में रहने वाले लोग जरूरत के समय एक-दूसरे पर भरोसा कर सकें। इस क्षेत्र में उनका काम उनके लिए सिर्फ एक नौकरी नहीं है बल्कि स्वतंत्रता का अभ्यास करने और निरंतर सीखने का एक तरीका है।
मधु बताती हैं की अब वे अपने काम को अधिक आत्मविश्वास के साथ करती है; पहले उन्हें डर लगता था कि कोई उसके काम के खिलाफ शिकायत कर सकता है लेकिन अब वह अपने काम का मूल्य जानती है।
अपने अटूट समर्पण और अधिकारों तथा मूल्यों की बेहतर समझ के साथ मधु लगभग 1500 व्यक्तियों को आगे आने और अपनी लड़ाई लड़ने के लिए सशक्त बना रही हैं।
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