कमला देवी एक दृढ़, स्पष्टवादी और आत्मनिर्भर महिला हैं जो झारखंड राज्य के गुमला जिले के पोक्टा गांव की रहने वाली है। वह एक न्यायपूर्ण और समानता आधारित समाज बनाने की दिशा में काम करती हैं। अपने पति को खोने के बाद उन्हें अपने घर और बच्चों के शिक्षा की ज़िम्मेदारी उठानी पड़ी।
इतना कुछ होने के बाद भी कमला देवी नहीं रुकीं, वे दृढ़ बनी रहीं और उन्होंने ये कर दिखाया। वह अब अपनी मां और तीन बच्चों के साथ रहती हैं।
उनके बच्चे स्कूल जाते हैं और वो स्वयं एक ब्लॉक से दूसरे ब्लॉक में जाकर महिलाओं को जेन्डर के बारे में बात करने के लिए प्रेरित करती हैं और विभिन्न रूढ़ियों, गलत धारणाओं और वर्जनाओं के बारे में समझाती हैं कि इसका क्या मतलब है। वह गुमला जिले के महिला विकास मंडल के साथ उनके जेंडर डीआरपी (जिला संसाधन व्यक्ति) के रूप में काम करती हैं और पोक्टा में स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की सदस्य भी हैं।
वी, द पीपल अभियान के साथ प्रशिक्षण के समय कमला देवी को अपने अधिकारों की शक्ति का पता चला। 'संविधान से समाधान' प्रशिक्षण पूरा करने के बाद, संविधान के ज्ञान से सशक्त होकर उन्होंने अपनी पेंशन के लिए आवेदन करते हुए ब्लॉक स्तरीय कार्यालय को एक पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और पेंशन प्राप्त करने के अधिकार पर जोर दिया।
"आपने कहाँ से सीखा कि आपको पत्र लिखना चाहिए?" आवेदन की प्रक्रिया के दौरान उनसे कुछ इस तरह पूछा गया मानो उन्हें विश्वास ही न हो रहा हो। उन्हें यह बताते हुए गर्व हो रहा था कि यह सब कुछ उस प्रशिक्षण की वजह से हुआ जिसमें उन्होंने भाग लिया था। वहां उन्होंने सीखा कि पेंशन प्राप्त करने के लिए उचित संपर्क क्षेत्र कौन से हैं और अपने अधिकार का प्रयोग किस तरह से करना है।
अपनी जीवन यात्रा में कमला देवी ने वार्ड परिषद का चुनाव भी लड़ा है. उन्हें अपनी भागीदारी के लिए महत्वपूर्ण समर्थन मिल। कई लोगों ने उनसे कहा कि चूंकि उनकी शादी दूसरे गांव में हुई है इसलिए वह पोक्टा से चुनाव नहीं लड़ पाएंगी। लेकिन वे बेहतर तौर से जानती थीं कि चूँकि वह 5 वर्षों से अधिक समय तक पोक्टा में रही थी इसलिए निर्धारित नियमों के अनुसार वे चुनाव में खड़े होने के योग्य थीं और उन्होंने वैसा ही किया।
वोटों से तो उन्हें जीत नहीं मिली, लेकिन अपना हक जताने में वे विजयी रहीं।
उनके अनुभवों ने उन्हें परिवर्तन का एजेंट बनने के लिए प्रेरित किया है। वह अब पोक्टा ग्राम सभा में सक्रिय भागीदार हैं। इस अवसर का लाभ उठाकर उन्होंने चर्चाओं में भाग लेना शुरू किया और अपने अधिकारों का दावा किया। वे समानता और भाईचारा जैसे संवैधानिक मूल्यों को प्रोत्साहित करती हैं साथ ही लोगों को उनके अधिकारों के बारे में किसी भी सवाल का जवाब भी देती हैं।
हम अभी भी ऐसे समाज में रहते हैं, जहां महिलाओं को बोलने से रोका जाता है और उन्हें उनके अधिकारों तक पहुंच से वंचित किया जाता है। लेकिन कमला देवी ने इन बाधाओं को तोड़ने में सफलता प्राप्त की।
महिला विकास मंडल और अपने स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से वे महिलाओं को उन सामाजिक मानदंडों और रूढ़ियों के बारे में बताती हैं जो महिलाओं के लिए बाधा बनती हैं। महिलाओं को शिक्षित करके और उन्हें एसएचजी के माध्यम से वित्तीय सहायता प्राप्त करने में मदद करते हुए वे उन्हें ग्राम सभा के माध्यम से राजनीतिक प्रक्रिया में भी सक्रिय भागीदार बनने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
उनका मानना है कि उनके विचार सुने जाने चाहिए। आखिरकार, यह उनका संवैधानिक अधिकार है। तो फिर वे इसके हकदार क्यों नहीं होने चाहिए?
कमला देवी अपने काम के माध्यम से अपने परिवार, दोस्तों और पूरे समाज को सशक्त बनाने का काम करती हैं। कमला देवी ने जिन महिलाओं को प्रशिक्षित किया है उन्हें आगे आते, सक्रिय रूप से शामिल होते और अधिक आत्मविश्वास के साथ अपनी राय व्यक्त करते देखा जा सकता है। जीवन की बाधाओं के प्रति उनकी दृढ़ता ने कई लोगों को कभी हार न मानने और किसी भी चुनौती का डटकर सामना करने के लिए प्रेरित किया है।
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